Wednesday, August 5, 2015

नागालैण्ड की लोक कथाएं : कोढ़ी का इलाज



(लोक को समझने का एक उपयुक्त माध्यम हो सकती हैं लोककथायें. नागालैण्ड के मोकोकचुंग शहर में घूमते हुये मिली एक छॊटी सी पुस्तक में आई. बेन्डान्गंगाशी जो कि एक अंडरग्राउंड लीडर थे, द्वारा संकलित पचास लोककथाएं मुझे मिली. संकलन अंग्रेजी में था. लेकिन पढकर लगा की कथाओं में नागा लोक संस्कृति की जटिलताओं व साथ ही साथ , सरलताओं की सफल अभिव्यक्ति हुयी हैं. किसी “इचबा” (बाहरी/भारतीय) के नागालैण्ड को समझने , देखने का एक जरिया हो सकती हैं ये कथाएं. प्रस्तुत है अनुवाद का यह प्रयास........)



Ang (Chief) in Partial Costume, with Ear Plugs and Necklaces And Two of his Wives in Costume Near Woven Bamboo Houses with Thatch Roofs 1954 Konyak (Copyright protected)
कोढ़ी का इलाज
(A Leper finds healing power)
बहुत वर्षों पहले की बात है। एक जवान आदमी था जिसे चमड़ी का रोग था। उसकी पूरी देह पर गन्दे निशान थे। इस कारण उसके गांव वालों ने उससे कोई भी बात व्यवहार बन्द कर दिया था व उससे घृणा करते थे. एक जवान आदमी के तौर पर वह भी दूसरे जवानों की तरह अपने आप को किसी लड़की से जुड़ा हुआ देखना चाहता था और इसलिय अक्सर वह रात को अरेजू ( छात्रावास जैसा जिसमें गांव की सारी कुंवारी लड़कियां एक साथ रहती हैं)   के चक्कर लगाता था. फिर भी किसी सुन्दर लड़की ने उसमें रुचि नहीं दिखायी. कोई उससे बात नहीं करना चाहता था. 

  यहां तक कि उसे पूरी दुनियां ही बिलकुल सूनी लगने लगी थी. इतनी सूनी जैसे कि नर्क हो. ऐसा कहा जाता था कि वह गांव के एक सम्मानित परिवार से था लेकिन इससे उसकी कठिन समस्या का निदान नहीं हुआ. उसने बहुत सोचा. सोचा और सोचा. आशाओं , निराशाओं से जूझते हुये अन्त में उसने अपने प्रिय सगे सम्बन्धियों , नाते रिश्तेदारों को छोड़कर जंगल में बसने  का निर्णय लिया. उसने आशा की कि उसे थोड़ी शान्ति मिलेगी. अपने निर्णय के अनुसार भोर में ही उसने दुख और जरूरतों से भरे जंगली जीवन के लिए अपना गांव छोड़ दिया. और बहुत दिनों तक जंगल में यहां वहां भटकने के बाद वह एक गुफा में पहुंचा . वहां पास में ही एक छोटा सा झरना था. 

यहां तक कि तुरन्त ही उसने वहीं रहने की सोची और रहने के लिए हर जरूरी जुगाड़ किया. बहुत सी व्यवस्था के बाद वहां रहने लायक घर जैसा हो पाया. तब , उसी दिन से वह वहां अकेले ही रहा. किसी भी आदमी के सम्पर्क से अछूता, केवल जंगली जानवरों व घने अंधेरे जंगल के शैतानों की संगति में. 

वहां रहते हुये एक दिन सुबह वह अपनी गहरी निद्रा से उठा और गुफा में चुपचाप शान्ति से बैठा रहा. तभी उसे एक आवज सुनायी दी. उसे लगा कि आसपास झाड़ियों में कुछ है. वह धीरे से उठा और दबे पांव उधर गया जहां से आवाज आ रही थी.      
                                                   


जैसे ही उसने झाड़ियों के बीच झांका , उसे एक बड़ा पेर (कोबरा, जहरीला सांप) दिखायी दिया. ध्यान से देखने पर पता चला कि पेर की पूरी देह पर कोई रोग है जिससे उसकी चमड़ी सड़ गयी है. वह बहुत बुरा लग रहा था, मानो उसे कुष्ठ रोग हो.
पेर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा. उस व्यक्ति ने अपने आप को पेड़ों के पीछे छुपा लिया और चुपचाप पेर को देखता रहा. पेर थोड़ी दूर जाकर वहां उगी एक चौड़े पत्तों वाली घास को खाने लगा . आदमी आश्चर्यपूर्वक पेर और उस घास को देखता रहा. कुछ पत्तियां खा लेने के बाद पेर धम्म से पास के झरने के गहरे पानी में डुबकी लेने उतर गया.
काफी समय तक नहाने के बाद पेर( सांप) गहरे पानी से बाहर आया. लेकिन अब वह एकदम नया पेर लग रहा था. उसकी त्वचा बहुत मुलायम व कोमल हो गयी थी. उस पर वह गन्दा कुष्ठ रोग नहीं था. यह शानदार परिवर्तन बस कुछ मिनटों में हुआ था. इसके बाद पेर वहां से झाड़ियों में सरक गया, कभी दुबारा न दिखने के लिए.
यह सब देखकर जवान व्यक्ति एकदम स्तम्भित रह गया. उसने उस जादूई पौधे के बारे में जानना चाहा जो सांप की ऐसी गन्दी और भयानक चमड़ी की बीमारी को दो पल में धुल सकता है. थोड़ा ही खोजने के बाद उसे वह पौधा मिल गया . यह सोचकर कि जैसे पेर की चमड़ी चमक उठी , वैसी उसकी भी हो जाएगी, जवान आदमी ने पौधे की कुछ पत्तियां निगल ली , कुछ अपनी देह पर मल ली. उसके बाद पेर की तरह उसने भी झरने के गहरे पानी में डुबकी लगा दी. और जब वह बाहर आया तो उसने अपने शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा.
अब उस जवान व्यक्ति की देह पर गन्दी और जर्जर चमड़ी कहीं भी नहीं थी. थी तो बस चमकदार कोमल , नयी त्वचा, बिलकुल किसी बच्चे जैसी. अत्यन्त ही आह्लादमय आश्चर्य के साथ वह जवान व्यक्ति एक नए प्राणी के तौर पर बाहर आया. जैसे कि यह सब एक सपना हो. हांलाकि यह सब एक सच था. और उस जवान व्यक्ति के पास कोई ऐसा शब्द नहीं था जिससे इस आश्चर्यजनक रूप से चंगा कर देने वाली शक्ति के प्रति हो रही खुशी को व्यक्त कर सके. इसी खुशी में वह अपने घर, गांव की ओर चल पड़ा, अपनी अधेरी गुफा को सदा के लिए छोड़कर.    
जैसे ही उसने झाड़ियों के बीच झांका , उसे एक बड़ा पेर (कोबरा, जहरीला सांप) दिखायी दिया. ध्यान से देखने पर पता चला कि पेर की पूरी देह पर कोई रोग है जिससे उसकी चमड़ी सड़ गयी है. वह बहुत बुरा लग रहा था, मानो उसे कुष्ठ रोग हो.
पेर धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा. उस व्यक्ति ने अपने आप को पेड़ों के पीछे छुपा लिया और चुपचाप पेर को देखता रहा. पेर थोड़ी दूर जाकर वहां उगी एक चौड़े पत्तों वाली घास को खाने लगा . आदमी आश्चर्यपूर्वक पेर और उस घास को देखता रहा. कुछ पत्तियां खा लेने के बाद पेर धम्म से पास के झरने के गहरे पानी में डुबकी लेने उतर गया.
काफी समय तक नहाने के बाद पेर( सांप) गहरे पानी से बाहर आया. लेकिन अब वह एकदम नया पेर लग रहा था. उसकी त्वचा बहुत मुलायम व कोमल हो गयी थी. उस पर वह गन्दा कुष्ठ रोग नहीं था. यह शानदार परिवर्तन बस कुछ मिनटों में हुआ था. इसके बाद पेर वहां से झाड़ियों में सरक गया, कभी दुबारा न दिखने के लिए.
यह सब देखकर जवान व्यक्ति एकदम स्तम्भित रह गया. उसने उस जादूई पौधे के बारे में जानना चाहा जो सांप की ऐसी गन्दी और भयानक चमड़ी की बीमारी को दो पल में धुल सकता है. थोड़ा ही खोजने के बाद उसे वह पौधा मिल गया . यह सोचकर कि जैसे पेर की चमड़ी चमक उठी , वैसी उसकी भी हो जाएगी, जवान आदमी ने पौधे की कुछ पत्तियां निगल ली , कुछ अपनी देह पर मल ली. उसके बाद पेर की तरह उसने भी झरने के गहरे पानी में डुबकी लगा दी. और जब वह बाहर आया तो उसने अपने शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा.
अब उस जवान व्यक्ति की देह पर गन्दी और जर्जर चमड़ी कहीं भी नहीं थी. थी तो बस चमकदार कोमल , नयी त्वचा, बिलकुल किसी बच्चे जैसी. अत्यन्त ही आह्लादमय आश्चर्य के साथ वह जवान व्यक्ति एक नए प्राणी के तौर पर बाहर आया. जैसे कि यह सब एक सपना हो. हांलाकि यह सब एक सच था. और उस जवान व्यक्ति के पास कोई ऐसा शब्द नहीं था जिससे इस आश्चर्यजनक रूप से चंगा कर देने वाली शक्ति के प्रति हो रही खुशी को व्यक्त कर सके. इसी खुशी में वह अपने घर, गांव की ओर चल पड़ा, अपनी अधेरी गुफा को सदा के लिए छोड़कर.   

उस जवान का गांव वापस आना एक सपने जैसा ही था. उसके सगे सम्बन्धियों ने उसका खूब स्वागत किया. उसने लोगों को उत्साहपूर्वक बताया कि किस तरह पेर (सांप) के दिखाये गये जादूयी पौधे से उसने अपनी भयानक बिमारी का इलाज किया. इस अवसर पर सभी ने ध्यानपूर्वक पौधे के बारे में जानकारी ली. और प्रसन्नतापूर्वक सर्वशक्तिशाली ईश्वर को धन्यवाद दिया जिसने अपने सेवकों को सांप के द्वारा एक भयानक बीमारी से ठीक होने का रास्ता दिखाया.
वस्तुतः सर्वशक्तिशाली ईश्वर के इस गहन प्रेम के
लिए पूरे गांव ने खूब उत्सव मनाया.

इसके बाद वह व्यक्ति अपने पुराने दिनों की तरह , रोज रात अरेजू (लड़कियों का छात्रावास) गया. वहां उसने लड़कियों के व्यवहार में बहुत परिवर्तन महसूस किया. पुराने दिनों से अलग, घुसते ही , लड़कियों ने उसे आग के पास वाला स्थान बैठने के लिये दिया. लेकिन उसने बैठने के लिए वह स्थान लेने से इन्कार कर दिया और पुराने दिनों की तरह वह कमरे के एक कोने में बैठा. इससे तुरन्त ही लड़कियां आंसू बहाने लगी. जल्द ही सबने आंसू पोछे और एक दूसरे से बहाना किया कि धुंए की वजह से उनके आंसू निकलने लगे थे.


जल्द ही उस व्यक्ति ने शादी कर ली और सभी बीमारियों से आजाद एक सुखी घर बसाया, अपने बुरे अतीत को भुलाकर. उस आदमी का नाम लामसंग था. और वह जिस गुफा में रहा था उसे अब लामसंग यदेन कहा जाता है. यह गुफा अब भी उंग्मा गांव के पास लामसंग रोगी के दुख व कठिनाई की कहानी कहती , स्थित है. 

Sunday, August 2, 2015

धर्म एक तवायफ़ है।

संस्थागत धर्म एक तवायफ़ है।
राजनीति के कोठे पर नाचा करती है।


रसूख की लार से गीली कर उसकी देह
सत्ता के ठेकेदार
करते हैं दानवी उपभोग।


आज से नहीं
बहुत पहले से।