Thursday, January 27, 2011

अनुपस्थिति


ढलते……उदास….दिन !
खाली साझें……सन्नाटा !

तेज चलती….रूखी…हवाएं !
बन्द गलियारों में बिखरे
सूखॆ ,खड़खड़ाते पीले पत्ते !

कहीं ये तुम्हारी याद के
कुछ और नाम तो नहीं ?
! !
! !
! !
दिनभर सो कर उठा हूं मैं
चलूं कुछ काम करूं ………..!

जिन्दगी ऐसे तो नहीं चलती ! 

Wednesday, January 12, 2011

दुनिया चलती रहती है !

यह दुनिया चलती रहती है !
चलती रहती है
और चलती रहती है !

क्योंकि इस दुनियां में
बहुत से अच्छे साफ दिल लोगों ने
बड़े मन से खूब चभककर
जिससे अच्छावाला प्यार किया
उसे ब्याह सके !

तरह तरह की बातें सोच
चुप रहे
फिर चुप ही रह गये
कुछ कह सके  !
फिर ?
फिर क्या? ???

लुट गये
पिट गये
कुच गये
दिल दिमाग सब
पिचुक गये
सिद्धान्त सब झर गये
बदल गयी बोली
फिर ?
फिर क्या???

ढल गये दुनियादारी में
मानने लगे पप्पा का हर कहा
चुपचाप कर ली नौकरी
उहां वाले मौसा के मामी
के फलनवां दमाद की
सुघ्घर सी बिटिया के
जीवन में कर गये अजोर !
फिर ?
फिर क्या???

कविता खतम ! ! !
रहा है याद कुछ पुराना ???
छोड़िये हटाईये ……….
जाइये मूं धोकर आईये !
यह दुनिया चलती रहती है !
चलती रहती है और चलती रहती है...........