Sunday, July 4, 2010

वैजयंती

कहॊ !
राग की यह वैजयन्ती
तुम कहां से लहा लाये ?

सजाये पलाश-पल्लव , गूंथ माला, फेर दी
नेह विजड़ित मन मेरा , बन मुर्तिका , सज गया !

दूर हो मुझसे , बना चन्दन , घिसा मुझको
फिर मुझी पर पोत सारा , चन्दन गन्ध मादल कर दिया !

दी थाल वेदना की ,सजाने को आंसुओं के मौन दीप
फिर फेर एक दुलार पूरित करूणार्द्र दृष्टि, ज्योतित सभी को कर दिया !


थे विशद विप्लव , संवेग-वात्याचक्र-प्रकम्पित सत्व
गहन आह्लाद में बोर तुमनें, अखण्ड - प्रशान्ति - यज्ञ ॠत्विक बना दिया !

कहो !
इस घने अवसाद में यह
जड़ी बूटी कहां पाये ?
राग की यह वैजयन्ती
तुम कहां से लहा लाये ?