Thursday, May 28, 2009

मिलन


प्रणय का उत्कर्ष जो है
स्वप्न का उल्लास जो है ,
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!


आशाओं का आलम्ब जो है
प्रेरणाओं का उद्‍गार जो है
सत्य का सन्धान जो है
असत्य का स्वीकार जो है ,
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!


प्रछन्न दो अस्तित्व जो है
विलग चेतना के व्यापार जो हैं
मध्य के अवकाश जो है
प्रत्येक का जब होगा उन्न्यन ,
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!


प्रत्येक क्षण एक प्रयास जो है
स्पर्श की अभिलाष जो है
उत्क्षिप्त मन के भटकाव जो है
सभी का जब होगा उन्मीलन
सोचता हूं कैसा होगा वह मिलन !!!

Sunday, May 10, 2009

हम टूट गए........

हम टूट गये ।
टूट जाती है बीच से जैसे
सूखी लकड़ी ।

झिप गयी चमक
उल्लसित स्वप्नों की आभा से दीप्त
हमारे नयनों की ।

झर गये आह्लाद- सौरभ ,
विह्वल मन की मधु-तृषा प्रतानें
क्लांत हुयी ।

इसलिये
कि
कुछ तुममें था
जो मुझे तुम्हारे पास ले गया था ।
और
कुछ मुझमें था
जो तुम्हें मेरे पास लाया था ।

शायद इसलिये ही हम टूट गये…………..! ! !

काश !
मैं मुझमें ही कुछ खोज पाता
जो मुझे तुमसे संलग्न करता ।
काश !
तुम खुद में ही कुछ देख पाते
जो तुम्हें मेरा पता देता ।


हो सकता है ,
तब……….न टूटते हम……….!!!

Thursday, May 7, 2009

Sunday, May 3, 2009

जीत

जो जीत मिली है तुम्हें
और जिस पर तुम इतने प्रफुल्लित हो
उसे बस लोगों को दिखाने के लिये
अपने घर के दरवाजे पर
बांस लगाकर टांग मत देना !
या खो देने के डर से उसे छुपाकर
पुराने लकड़ीवाले घुने लगे संदूक में न रख देना ।

उसे निकालना
और बिलकुल अपने पास ,हाथ में ले
इधर उधर पलट कर देखना , निरखना !
पूर्वाग्रहों और लिप्साओं को कुछ क्षण के लिये स्थगित कर
उसे फिर से दो चार बार और देखना ।

यदि यह देखना सच्चा हुआ
तो
तुम्हारी इस जीत में , जिस पर तुम इतने प्रफुल्‍लित हो,
कई ऎसे छेद आयेगें
जहां से जीत का वह लोंदा बिलकुल हार जैसा दिखेगा ।
उपलब्धियों का वह टीला
जिस पर तुम्हारे अभिमान की नींव है , रेत के ढ़ूह सा बिखर जायेगा !
आस पास के लोगों से मिलती
प्रशंसाएं प्रेरणाएं व सम्मान सब
चिम्पैजियों की बकवास चिचियाहटों से लगेंगे !


जरा देखना ध्यान से ,
एक बार और ।