Tuesday, June 2, 2009

भागो !



(मन ने मन से कहा --)

मत लड़ो ।
हार जाओगे ।


दुख से लड़ा जा सकता है ।
अहंकार , ईर्ष्या ,द्वेष व क्रोध
सभी से लड़ा जा सकता है ।

लेकिन…..
मत लड़ो ,
हारोगे ।
वह रूप बदल कर आया हुआ
विशुद्ध आनन्द है ।

लड़ा नहीं जा सकता उससे ।
अपराजेय है वह ।


भागो !

4 comments:

  1. निहित अर्थ बहुत ख़ूबसूरत है

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  2. Behad sundar bhaav hain!
    snehsahit
    shama

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  3. एक चिंतन -जनित कविता.
    बहुत सुन्दर !!!

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