Sunday, May 10, 2009

हम टूट गए........

हम टूट गये ।
टूट जाती है बीच से जैसे
सूखी लकड़ी ।

झिप गयी चमक
उल्लसित स्वप्नों की आभा से दीप्त
हमारे नयनों की ।

झर गये आह्लाद- सौरभ ,
विह्वल मन की मधु-तृषा प्रतानें
क्लांत हुयी ।

इसलिये
कि
कुछ तुममें था
जो मुझे तुम्हारे पास ले गया था ।
और
कुछ मुझमें था
जो तुम्हें मेरे पास लाया था ।

शायद इसलिये ही हम टूट गये…………..! ! !

काश !
मैं मुझमें ही कुछ खोज पाता
जो मुझे तुमसे संलग्न करता ।
काश !
तुम खुद में ही कुछ देख पाते
जो तुम्हें मेरा पता देता ।


हो सकता है ,
तब……….न टूटते हम……….!!!

3 comments:

  1. समझ रहा हूँ अभिषेक । कई बार ऐसे ही बहुत कुछ खोजते स्वयं का परिचय देखा है मैंने तुम्हें । कहाँ, क्या बताना ?

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  2. काश !
    मैं मुझमें ही कुछ खोज पाता
    जो मुझे तुमसे संलग्न करता ।
    काश !
    तुम खुद में ही कुछ देख पाते
    जो तुम्हें मेरा पता देता ।

    बहुत ही खूबसूरत

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  3. बहुत अच्छे आर्जव

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