Wednesday, January 21, 2009

धरती और धूप

बदल रहे हैं धीरे धीरे धरती और धूप के रिश्ते! शायद इसी बदलने को मौसम का बदलना कहते है !
आज की धूप में वो कुछ दिनों पहले वाला संकोच नहीं दिखा!


नये नये रिश्ते में वो नजर बचाकर एक दूसरे को निरखना, और फिर अनायास ही एक बार कहीं छू जाने पर, बार बार छू लेने की वह कोमल नेह निमीलित ओस सी आस!

पास पास बैठे होने पर आदर भरे संकोच के स्मंभों पर टिका, लाज की नीली किरन की डोर से बुना एक दूसरे के बीच हौले हौले डोलता मध्दम शब्‍दों (कुहासे) का पुल!
सब आज कहीं पीछे छूटे- से लगते रहे !

और रिश्ते में अपनी निश्चितता के एक झूठे आभास से, भ्रम से, धूप का खुद में विश्वास कुछ ज्यादा दिखा! आम के एक प्रौढ़-से पेड़ की डाल पर बिलकुल आराम से बैठा हुआ, सामने के बड़े-से पीपल-मुहल्ले में,डाल की गलियों में आती जाती और पत्तियों की दुकानों पर खरीदारी करती हवा की लड़कियों को टूकुर-टूकुर ताकता, चाह की शक्कर घुली स्मृतियों की गरमागरम चाय पीता धूप का टुकड़ा, बहुत देर तक कुछ ध्दृष्ट सा लगता रहा!


शायद उस बेवकूफ को लग रहा है कि अब वह कहीं से भी, और कितना भी, छू सकता है धरती को...... . . . . . !

4 comments:

  1. बहुत ख़ूब

    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    चाँद, बादल और शाम

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  2. बहुत सुंदर गहरे भाव हैं इस के ..

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  3. अच्छा दृश्य-विधान. प्रभाव है इस पोस्ट का. लिखते रहो.

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